अन्ना के भूतपूर्व चेलों को चाहे दिल्ली के मसलों को लेकर कितना भी बदनाम कर लें उनको पंजाब तथा गोवा में सफलता जरूर मिल सकती है। सच यह है कि अन्ना के चेलों सत्ता प्राप्ति के लिये लक्ष्य की तरफ बढ़ रहे हैं उसमें दिल्ली एक बार की सत्ता से अधिक अब कुछ नहीं दे सकती। दिल्ली के बजट की दम पर पूरे देश के प्रचार जारी रखकर अपना नाम जीवंत रखा है। दिल्ली के विषयों पर उन्हें बदनाम कर पंजाब में रोका जा सकता है-इसमें संदेह होना स्वाभाविक है।
इसकी वजह भी साफ कर दें। गोवा और पंजाब में वर्तमानकाल के पक्ष तथा विपक्ष दोनों के प्रति जनता में नकारात्मक भाव होने की स्थिति दिख रही है। वहां दिल्ली के ढोल सुहावने बने हुए हैं इसलिये कुछ प्रचार माध्यमों ने वहां अन्ना के चेलों की भारी जीत की संभावना जताई थी। इन दोनों राज्यों में राजनीतिक रूप से असमंजस की स्थिति नहीं रहती अगर अन्ना के चेलों ने अपनी ताकत नहीं दिखाई देती। अन्ना के चेले इस बात को जानते हैं कि दिल्ली की बदनामी इन दोनों राज्यों में राजनीतिक मैदान पर खाली पड़ी उम्मीदों की जमीन पर उतरने से उनको नहीं रोक सकती। इसलिये तमाम तरह के वादे किये जा रहे हैें। इतनी राजनीति तो इन्होंने सीख ली है कि वादे करते और सपने दिखाते जाओ। बाद में क्या होगा इसकी परवाह नहीं करनी है। बाद में वादे पूरे नहीं किये तो भी क्या पांच साल तो प्रशासन-पुलिस महकमे सहित-उनके पास रहना है। संभव है कि दोनों प्रदेशों की जनता भी यह सोच ले कि हमें क्या? आजमा लो इनको शायद अच्छा काम कर लें! यह वादे पूरे नहीं करते तो क्या दूसरे भी तो नहीं करते।
अन्ना के इन चेलों ने चुनाव लड़ने व जीतने तक लक्ष्य रखा है। वह इसलिये दिल्ली में काम व वादे पूरे करने जैसे आरोपों की चिंता नहीं कर रहे। उनके प्रतिद्वंद्वियां को भी यह नहीं सोचना चाहिये दिल्ली की बदनामी से इनको गोवा या पंजाब में रोक लेंगे। उन्हें कोई ठोस उपाय करने होंगे। हमारा किसी दल से कोई संबंध नहीं है पर एक बात मानते हैं कि दिल्ली में अन्ना के चेले दोबारा शायद ही जीत पायें? इसकी उन्हें अब संभवतः परवाह भी नहीं है। कम से कम अन्ना के चेले तो यही मानते हैं कि अब वह सत्ता के शिखर की तरफ बढ़ रहे हैं-इसमें कितने सफल होंगे यह तो भविष्य ही बतायेगा।
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