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साथ चलते इंसान
परिंदों की तरह उड़ गये।
उनकी यादों ने
कुछ देर परेशान किया
फिर नये राही जुड़़ गये।
कहें दीपकबापू हम भी
खड़े देखते रहे
मौसम और मन के मिजाज
धूप से लड़ने की ठानी
कभी छांव की तरफ भी मुड़ गये।
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जीवन पथ परसहयात्री की खोजआंखे करती हैं।बहुत नरमुंड मिलतेउनकी इच्छायें ही साथीहमेशा आहें भरती हैं।कहें दीपकबापू याद मेंकिसे बसाकर अपना दिल बहलातेहृदय की भावनायेंनयी चाहत पर मरती है।--------------
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