Friday, April 29, 2016

इंसान बंदर है-हिन्दी कविता(Insan Bandar Hai-Hindi Poem)

चाहत है तैरने की
घर से बहुत दूर
बह रहा समंदर।

दिल में सपनों के
पानी का  खाली घड़ा
तड़प रहा अंदर।

कहें दीपकबापू मन के खेल में
फंसा इंसान
बेचैनी पालकर
ढूंढता अमन
चाल से लगे एक बंदर।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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