Sunday, December 13, 2015

समविषम में कुछ भी हो सकता है-लघु हिन्दी हास्य रचना ( A Short Hindi Comdey article on OddEvenFormula)


     फंदेबाज ने दीपकबापू से कहा-मैंने कार नहीं खरीदी इसलिये अब स्वयं को खुश अनुभव कर रहा हूं। वैसे ही छोटी बात पर ही मेरा तनाव बढ़ जाता है। अब मेरे सामने समविषम क्रम वाली किसी कार की समस्या नहीं है।
    दीपकबापू ने कहा-यह हमारा फार्मूला हम पर चिपका रहे हो। बेकार प्रसन्न रहने का यह तरीका हम बहुत समय से अपना रहे हैं। बहरहाल हमने अंतर्जाल पर कुछ ऐसी सामग्री देखी है जो तुम्हारा तनाव बढ़ाने वाली है।
            फंदेबाज ने कहा-वह तो मालुम है कि तुम मुझे कभी खुश नहीं देख सकते। फिर भी बताओ क्या पढ़ा है।
          दीपकबापू बोले-भाई लोगों ने चाप दिया है कि अब पानी की समस्या का हल भी कुछ ऐसे ही निकलेगा। समदिवस पुरुष विषम दिवस नारी और रविवार को बच्चे नहायेंगे। सुरक्षा के लिये भी नारी पुरुष व बच्चें के लिये बाहर आने पर ऐसा ही नियम बनने वाला है।
            फंदेबाज सिर खुजलाने लगा-पर इस तरह का नियम कैसे हो सकता है? मैंने नहीं सुना, तुम जरूर मजाक कर रहे हो।
          दीपकबापू ने कहा-आजकल हम न मजाक करें न लिखें क्योंकि अब बड़े बड़े लोग की गंभीर बातें भी हमें मजाक लगती हैं। ऐसा लगता है कि मजाक भी अब खास लोगों की जागीर बन गयी है यह अलग बात है कि उनकी ताकत इतनी है कि उसे गंभीर ही कहना पड़ता है।
         फंदेबाज ने कहा-समविषम दिवस पर बाहर आने की बात जमती नहीं पर यह नहाने की समस्या! अंदर नहायेंगे तो किसे पता चलेगा कि कौन कब नहाया।
        दीपकबापू ने कहा-खुशफहमी में नहंी रहना। सभी के बाथरूम में कैमरा लग जायेगा।
         फंदेबाज ने कहा-ऐसा होता है क्या? मजाक कर रहे हो।
       दीपकबापू ने कहा-समस्याऐं जब जटिल हों तब उनका हल हो या नहीं पर करते तो दिखना चाहिये न! इसलिये कुछ भी हो सकता है।
                           फंदेबाज ने पूछा-आखिर ऐसी हालत में कैसे खुश रहा जा सकता है?’’
          दीपकबापू ने जवाब दिया-सामान खरीदना, बाजार में खाना और मनोरंजन के पीछे भागना कम कर दो। सब तनाव समाप्त हो जायेगा।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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1 comment:

जसवंत लोधी said...

सुन्दरतम अभिव्यक्ति हेतु ।धन्यवाद

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