Thursday, December 31, 2015

2015 में शब्दों के तूफान बहुत चले (In Word war in year 2015)

  
          कल से नया ईसवी संवत् 2016 प्रारंभ हो रहा है। इस अवसर पर टीवी चैनल ज्योतिष का विषय लेकर बड़े लोगों का अगले वर्ष का भविष्य बता रहे हैं। कुछ फिल्मों के अभिनेताओं को तूफान, महान, जनलोकप्रिय बताकर उनके पिछले वर्ष का लेखाजोखा प्रस्तुत कर रहे हैं।  हमने पिछले दो तीन दिल से ट्विटर पर कुछ संदेश लिखे हैं। वह बिना किसी संदर्भ के यहां प्रस्तुत हैं।
                           मनुष्य वही तूफानी कहा जा सकता है जो बाहर से आ रहे आक्रमण से अपने मन की रक्षा करे न कि वह जो समाज में भ्रम फैलाकर बुद्धिहरण करे। आज के विज्ञापन युग में कला, साहित्य व फिल्म क्षेत्र के अनेक लोगों को तूफानी, महान या अद्वितीय कहा जाता है। यह सब भ्रम है। मनुष्य सत्य में कभी तूफान नहीं होता। वायु कोई प्रथ्वी पर उत्पन्न जीव नही है पर विज्ञापन विशेषज्ञ अपनी कला से मनुष्य का मन हरण करने के लिये उपधियां गढ़ लेते हैं। शौचालय स्वच्छ द्रव्य के मिश्रण से बने शीतल पेय अगर तूफानी बना पाते तो भारत अभी तक अनेक बार विश्व फुटबाल कप जीत चुका होता। कलाकार या चित्रकार सामान्य इंसान से प्रथक नहीं होते यह अलग बात कि बाज़ार व प्रचार प्रबंधक उनके माध्यम से अपनी वस्तुऐं बेचने के लिये उन्हें तूफान या महानायक बना देते हैं।
                           जैसे जैसे पतंजलि कंपनी के उत्पादों का बाज़ार में विक्रय बढ़ेगा उसे विरुद्ध प्रचार भी अधिक होगा-यह धनशास्त्र का नियम है। पतंजलि कंपनी के नाम का संबंध चूंकि धर्म से है इसलिये उसी की आड़ में उसके उत्पादों का विरोध होगा। बड़ाप्रश्न
सामवेद से-सरस्वती स्तोम्या भूत्। हिन्दी में अर्थ-विद्या व ज्ञान की देवी सरस्तवी स्तुति योग्य है।
                        ज्ञान के पांव नहीं होते कि वह कोई शिखर पर चढ़कर सिंहासन पर बैठा दिखाई दे।  वह धारण करने का विषय है जिससे जीवन आनंदमय हो जाता है । उसे धारण करने वाला ज्ञानी स्वयं गुरु बनने का प्रयास नहीं करता वरन् लोग उसे आचरण से यह उपाधि देते हैं। भारत विश्वगुरु वैसे ही कहलाता है। आज के समय में आवश्यकता इस बात की है कि अध्यात्मिक ज्ञान जीवन में अपनाकर  विश्व में अपने समाज की श्रेष्ठता दिखायें। भारत पहले से ही विश्वगुरु है, ज्ञानी बनकर दिखायें।
              जो भक्त चाहते हैं कि हमारा समाज विश्व में शक्तिशाली अध्यात्मिक छवि बनाये तो उन्हें कल से ही योग साधना करने का प्रण लेना चाहिये। योग साधना के अलावा हम अन्य कोई ऐसा मार्ग नहीं देखते जिससे भौतिकतावाद से टूट चुका भारतीय समाज एक बार फिर आत्मविश्वास से खड़ा हो सके। कुछ योगशिक्षक रोगमुक्ति के लिये योगसाधना को श्रेष्ठ बताते हैं पर सच यह  है कि इसका अभ्यास निरोग जीवन बिताने का श्रेष्ठ उपाय है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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