Saturday, October 17, 2015

मुद्रा द्रव्य-हिन्दी कविता(Money as A liquad Dream-HindiKavita)

पेट की भूख
मिटाने वाली रोटी का
कोई रूप नहीं है।

मन में लगी आग
बुझाकर ठंडा करे
पानी का कोई कूप नहीं है।

कहें दीपकबापू बुद्धि से
बैर रखने वालों पर
तरस आता है
मुद्रा द्रव्य में डूबे
उनके सपनो को सुखा सके
ऐसी  कोई धूप नहीं है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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