Wednesday, April 29, 2015

सौदागर बन जाते शूकर-हिन्दी कविता(saudagar ban jaate shukar-hindi poem)

वाचाल व्यक्ति भी
पैसे से पद की
प्रतिष्ठा पा जाते हैं।

बेईमान व्यक्ति भी
ईमानदार होने का अभिनय कर
ज़माने भर की
निष्ठा पा जाते हैं।

कहें दीपक बापू समाज सेवा में
सौदागरों भी आजमाते भाग्य
पवित्र हृदय से मिलता दान,
नहीं रखते उस धन का मान,
शूकर की तरह बनाकर
विष्टा खा जाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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