Wednesday, August 27, 2014

चिंता की लकीरों के बीच-हिन्दी कविता(chinta ki lakiron ke beech zindagi-hindi poem)



न महंगाई घटेगी
न भ्रष्टाचार रुकेगा
चिंताओं की लकीरों के बीच
जिंदगी यूं ही बीत जायेगी।

कोई हालातों से मजबूर है,
कोई सामानों के भंडार से भरपूर है,
जिनको हंसने की आदत नहीं
उनकी रोनी सूरत
कभी नहीं जीत पायेगी।

कहें दीपक बापू जिंदगी बिताने के
अंदाज सभी के अलग हैं
किसी ने पायी दौलत
खर्च करना आया नही,
कोई सुंदर है
बुद्धि से रिश्ता निभाया नहीं,
सच यह फांकों से भी
कर ली जिसने दोस्ती
जिंदगी उसके ही गीत गायेगी।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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