Saturday, March 8, 2014

गमो को मात-हिन्दी व्यंग्य कविता(gamo ko maat-hindi vyangya kavita)



नीयत में छिपा अपना मतलब जुबान से करते सबके भले की बात,
महल में घुस जाते बटोरकर वाहवाही जश्न मनाते पूरी रात।
फरिश्ते बनने का दावा करते हैं
जगह जगह पर मुखौटे लगाये लोग,
लगाते हैं नारे जोर जोर से जमाने के उद्धार के लिये
जिनके मन में पल रहा है पद पैसा और प्रसिद्ध पाने का रोग,
सभी ने अपने चेहरे को सौंदर्य प्रसाधन से चमका लिया है,
असलियत बयान न करे आईने को धमका दिया है।
आकाश से तारे लाकर जमीन पर लगाने की बात करते हैं,
चिकित्सक लगे हैं व्यापार में बीमार यूं ही मरते हैं,
तख्त पर बैठने की चाहत वाले हर जगह घूमते हैं,
कौन देखता है ज़माने का व्यापार
ताज पहनने वाले खुशी में रहते हुंए झूमते हैं,
कहें दीपक बापू रोने से कोई फायदा नहीं होता
खुशी ढूंढो देने के लिये अपने गमों को मात।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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