हमारे देश में क्रिकेट खेल कब धर्म बन गया पता
नहीं। अलबत्ता इससे हमारे देश में क्रिकेट पर नियंत्रण करने वाली सस्था जरूर अमीर
बन गयी है। पैसा लेकर खेलने वाले और फिर कंपनियों के उत्पादों और सेवाओं के
विज्ञापनों में नायक की भूमिका कर अपने कथित प्रशंसकों को उनका ग्राहक बनने की
प्रेरणा देने के लिये भी शुल्क लेने वाले इन खिलाड़ियों को भगवान बना दिया गया है।
हैरानी तब होती है जिन प्रचार माध्यमों को भारतीय धर्मों में भारी अंधविश्वास ही
नज़र आता है उन्हें क्रिकेट खेल एकदम विश्वासपूर्ण लगता है। अनेक खिलाड़ियों पर मैच सट्टेबाजों
के हाथ बेचने के आरोप लग रहे हैं। अनेक
पकड़े गये तो अनेक छूट गये। हमारे प्रचार
पुरुष कहते हैं कि सभी खिलाड़ी भ्रष्ट नहीं है। उनको कहना ही पड़ेगा क्योंकि उनके
माध्यमों के विज्ञापनों में यही खिलाड़ी छाये हुए हैं जिनसे उनको पैसा मिलता
है। अलबत्ता इन्हीं प्रचार माध्यमों को
भारतीय धर्म अत्यंत अंधविश्वास से भरे
लगते हैं। भारतीय अध्यात्म के लिये उनके
मन में उनकी श्रद्धा दिखती है पर होती नहीं है।
हैरानी की बात है कि जब भारतीय धर्म की बात होती है तो तब उनको
धर्मनिरपेक्षता याद आती है पर जहां अंग्रेजियत और उनके क्रिकेट खेल की बात हो वहां
उसकी स्वीकार्यता करते हुए उनको जरा भी हिचक नहीं होती।
जब हम जमीन पर देखते है तो क्रिकेट खेलकर अपनी
सेहत बनाने और टीवी पर मैच देखकर अपनी आंखें खराब करने वाले दोनेां प्रकार को
लोग मिलते हैं। एक समय यह रोग हमको भी लगा
था पर जब एक बार क्रिकेट खिलाड़ियों के भ्रष्टाचार की खबरें सामने आयीं तो फिर मन
टूट गया। हमारा ही क्या हमारे अनेक
मित्रों ने इस खेल को देखने से इस तरह किनारा किया कि अब देखते ही नहीं है। उस समय
हमने देखा कि एक समय क्रिकेट खेल भारतीय जनमानस विदा हो रहा था पर जिस तरह हर
व्यवसायी अपना अस्तित्व बचाने का प्रयास करता है वैसे ही क्रिकेट की कंपनी ने भी
किया। कहीं से बीस ओवरीय विश्वकप में बीसीसीआई की टीम को जितवा दिया जिससे फिर
खिलाड़ी नायक बन गये। एक समय वेस्टइंडीज
में हुए कथित विश्व कप में बीसीसीआई की टीम के खिलाड़ी जिस तरह बुरी तरह से हारे तब
स्थिति यह थी कि उनके विज्ञापन टीवी से हटा लिये गये थे। क्रिकेट के भगवान का नाम तो कोई सुनना ही नहीं
चाहता था। विश्व के विभिन्न देशों में
क्रिकेट कंपनियां है जो अपने देश की राष्ट्रवादिता का दिखावा करते हुए बोर्ड नाम
जोड़ती है। देश का नाम जुड़ा होने से लोग भावुक तो हो ही जाते
हैं। भारत में तो देश और धर्म को लेकर
भारी संवदेनशीलता पाई जाती है। यहीं से ही
इन क्रिकेट कंपनियों का धंधा शुरु होता है।
एक सज्जन ने सुझाव दिया कि अपने देश भारत के नाम का उपयोग करने पर रोक लगे। यह जोरदार
सुझाव है। अगर वाकई बीसीसीआई की टीम के आगे से भारत शब्द हट जाये तो शायद उसका
समर्थन शून्य के स्तर पर पहुंच जाये। हमारे क्रिकेट के खिलाड़ी उन विज्ञापनों के
नायक हैं जिनसे प्रचार माध्यम चल रहे हैं।
इसलिये वह भगवान कहते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं हैं। हम पिछले अनेक समय से
देख रहे हैं कि प्रचार माध्यम यह कहते हैं कि लोग जो देखना चाहते हैं वही हम दिखा
रहे हैं जो वह सुनना चाहत हैं वही हम सुना रहे हैं। उनके दावे पर हमें तब यकीन
होता जब बाज़ार चलते कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाता जो कहता कि मेरा धर्म क्रिकेट है।
जिस तरह क्रिकेट खेल के सट्टेबाजों के हाथ चले
जाने की आशंक यही प्रचार माध्यम दिखा रहे हैं उसके बाद लगता नहीं है कि यह खेल
देखने लायक बचा है मगर प्रचार प्रबंधकों के पास इसी से संबंधित विज्ञापन इतने आते
हैं कि उसके कारण उन्हें प्रतिबद्धता दिखानी ही पड़ती है। एक टीवी चैनल तो साफ कह रहा है कि पूरे कूंऐ में
ही भांग है पर अधिकतर चैनल दाल में ही काला बताकर अपना पिंड छुड़ा लेते हैं। हमने क्रिकेट खेल से अपना दिल निकाल लिया है।
कभी कभार सामने कोई मैच आता है तो थोड़ी देर देख ही लेते हैं। वैसे अपने प्रचार
माध्यम भारत पाकिस्तान का मैच अपने विज्ञापनों तथा समाचारों में अत्यंत महत्व के
साथ प्रचारित करते हैं पर हकीकत यह है कि पाकिस्तान के खिलाड़ियों की विश्वसनीयता
और खेल दोनों ही समाप्त हो चुके हैं इसलिये उसमें आम जन की अधिक रुचि नहीं
है। यह अलग बात है कि उनमें मौजूद
राष्ट्रवाद के भाव से प्रचार माध्यम दोनों देशों के बीच होने वाले मैच के बीच अपने
विज्ञापन से कमाई की आशा अब भी करते हैं। पाकिस्तान के प्रति शत्रुता का भाव बनाये
रखने के लिये अब यही क्रिकेट मैच बचा है।
दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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