Thursday, February 6, 2014

सच्चाई और पाखंड-हिन्दी व्यंग्य कविता(sachchai aur pakhand-hindi vyangya kavita)



जल में बड़ी मछली छोटी को खा जायेगी यह तय है।
करिश्मा नहीं करती कुदरत चलने की उसकी अपनी लय है।
कहें दीपक बापू मजबूर इंसान कभी बगावत नहीं करता है,
पेट भरता जिसका आसनी से वही उसूलों का दम भरता है,
पत्थरों दिल इंसानों आगे शीश नवाकर की है जिन्होंने कमाई,
नही सह सकते कभी वह पसीना बहाने वाले मजबूर की बढ़ाई,
अपनी पेट की लड़ाई लड़ता इंसान दूसरे के लिये लगता फिक्रमंद,
पाखंड के ऐसे महला बनाता जहां सच का प्रवेश होता है बंद।
सभी अय्याशी का सामान चाहते पर कहने में उनको भय है,
ईमान सस्ते में बेचने वालों के लिये वफा बेकार की शय है।

दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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