Thursday, December 18, 2014

अपना पराया खून-हिन्दी कविता(apna paraya khoon-hindi poem)



अपना खून सभी को
प्यारा है
पराया पानी लगता है।

दूसरे के दर्द पर
झूठे आंसु बहाते
या हास्य रस बरसाते
अपने दिल पर लगे भाव जैसा
 नहीं सानी लगता है।

कहें दीपक बापू औपचारिकता से
निभाते हैं लोग संबंध,
नहीं रहती आत्मीयता की सुगंध
भावनाओं की आड़ में
हर कहीं शब्दों का
दानी ही सभी को ठगता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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