पढ़ी किताबें
बहुत
समझा अधिक नहीं
उपधियों भी जुटा
लीं
उनके पास अवसर
बोलने के बहुत
आते हैं।
भूल जाते हैं
विषय का सच
शब्दों के अर्थ
अपने दिमाग से
जुटाते
यह अलग बात है
उनके भाव तोलने
में कम पाते हैं।
कहें दीपक बापू
दौलत से विचार
खरीदे और बेचे
जाते हैं,
सौदागर पुराने
संकल्प
नया कर बाज़ार
में सजाते हैं,
विज्ञापनों की
भीड़ में
ठगे जाते हैं
पहले
बाद में पुराना
सपना
लिफाफे खोलने पर
पाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
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८.हिन्दी सरिता पत्रिका
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