Friday, May 21, 2010

हाशिए पर ही न खड़े रहें-हिन्दी संपादकीय लेख

आज एक ब्लाग पर नज़र पड़ गयी जिसमें किसी अखबार का संपादकीय ‘मस्तराम’ संबंधी साहित्य हिन्दी ब्लाग जगत पर लाने की आलोचना की गयी थी। साथ ही उसमें अनेक ब्लागों की भाषा में झगड़े फसाद तथा अभद्र लेखन को भी इंगित किया गया। अक्सर हिन्दी ब्लाग के बारे में अखबारों में चर्चा पढ़ने को मिलती है जिसमें इसी तरह की बातें प्रकाशित की जाती हैं।
हम यहां किसी प्रकाशित लेख या संपादकीय की आलोचना नहीं करने जा रहे मगर नज़रिये पर सवाल तो उठा ही सकते हैं। मुख्य बात यह है कि आप हिन्दी ब्लाग जगत के बारे में अपनी राय किस तरह कायम करते हैं। क्या आप किसी एक दिन में एक साथ सौ ब्लाग देखते हैं? दूसरा सवाल यह है कि आप कहां हिन्दी ब्लाग देखते हैं, सर्च इंजिनों में या प्रायोजित फोरमों पर जाकर।
जब आप सर्च इंजिनों में किसी विषय संबंधी खोज करते हैं तो उससे संबंधित ही सामग्री ही सामने आती है, अगर आप मस्तराम शब्द से ढूंढेंगे तो दूसरा विषय शायद न आये। ऐसे में आप यह तो कह नहीं सकते कि केवल मस्तराम विषय पर ही लिखा जा रहा है। अगर आप हिन्दी ब्लाग जगत में लड़ाई झगड़े या अभद्र भाषा लिखे जाने की बात कर रहे हैं तो इसका सीधा आशय है कि आप ब्लागवाणी या चिट्ठाजगत के हाशिये पर ही पढ़ते हैं, मुख्य क्षेत्र में पृष्ठ बदलकर देखने में आपको असुविधा लगती है। ऐसे में आप यह कैसे कह सकते हैं कि हिन्दी ब्लाग जगत में सब कुछ बुरा लिखा जा रहा है।
चिट्ठाजगत या ब्लागवाणी प्रायोजित फोरम है-उनके संचालकों के इस दावे पर यकीन करना मुश्किल है कि वह हिन्दी समाज सेवा के लिये हैं-इसलिये उनके सानिध्य में लिखने वाले ब्लाग लेखकों को हिट अधिक दिखाने ही पड़ते हैं-यह उनका निजी विषय है और इस पर कोई टिप्पणी करना ठीक नहीं। इन फोरमों के लेखकों के पाठ प्रतिदिन ही हाशिए पर सबसे ऊपर देखते हैं। अब यह कहना कठिन है कि संचालन मंडल से जुड़े लोग यह करते हैं या कुछ तेज तर्रार ब्लाग लेखक चालाकी से अपने पाठों को हिट कर ऊपर पहुंचाते हैं-वैसे अनेक ब्लाग लेखक ऐसे सीधे आरोप अपने पाठों में लगाते रहते हैं। एक बात तय रही कि इस ब्लागवाणी तथा चिट्ठाजगत का हाशिया ही सब कुछ नहीं है-कुछ ब्लाग लेखक तो कहते हैं कि वहां कुछ भी आम पाठक के लिये पढ़ने के लिये नहीं होता। दिल्ली तथा अन्य बड़े शहरों के प्रभावशाली लेखकों का वर्चस्व यहां ऐसे ही दिखता है जैसे कि हिन्दी साहित्य और पत्रकारिता मे। सच बात तो यह है कि जिस तरह कहा जाता है कि आदमी अपने जिंदगी में थक जाने के बाद ऐसे ही हाशिए ढूंढता है जहां से वह महत्वपूर्ण दिखे भले ही कोई प्रभावशाली काम न करे। आप साहित्य, समाज अन्य कला गतिविधियों में लगी संस्थाओं के पत्रों के प्रारूप पर दृष्टिपात करें तो भूतपूर्व प्रभावशाली लोग अपना नाम लिखाते हैं-वैसे कोई डाक्टर दवा लिखता है तो उसके पर्चे के हाशिए पर भी कुछ अस्पतालों या अन्य सहयोगी चिकित्सकों के नाम होते हैं। अपने देश के लोगों के पास भी समय बहुत है। पत्र मिलने के बाद पढ़ते हैं फिर भी उनके पास इतना समय तो रह जाता है कि वह कथित प्रभावशाली लोगों का नाम पढ़ें। पाठकों की इसी कमी का लाभ समाज सेवक और लेखक उठाना चाहते हैं। इसके विपरीत जो बूढ़े हो गये पर अभी भी अपने क्षेत्र में सक्रिय हैं वह कभी हाशिए पर जाने का विचार नहीं करते।
यह हाशिए का मोह हिन्दी जगत की सबसे बड़ी समस्या है अब अंतर्जाल पर भी यही होता लग रहा है। ब्लागवाणी या चिट्ठाजगत की गतिविधियां कैसी हैं यह चर्चा का विषय नहीं है बल्कि यहां ब्लाग पढ़ने वाले पाठकों को हाशिए से अलग मुख्य क्षेत्र में आकर ब्लाग पढ़ना चाहिए। एक ब्लाग लेखक होने के नाते हाशिए के हिट ब्लाग यह लेखक भी देखता है पर इसका आशय यह नहीं है कि दूसरे ब्लाग न देखें। जब आप हिन्दी ब्लाग जगत पर संपूर्णतया से लिखना चाहते हैं तो फिर आप इस हाशिए से दूर ही रहें क्योंकि वहां पर सीमित रहने का मतलब यह है कि आप अपने विषय को सीमित ही रख पायेंगे। अगर इन फोरमों से ब्लाग सूची बनायेंगे तो वह आठ से दस से अधिक नहीं होगी। अनुभवी ब्लाग लेखकों से चाहें तो ऐसी सूची मांग लें। वह पाठ देखते ही समझ जाते हैं कि आज यह टिप्पणियां, पसंद तथा पाठक संख्या अधिक लेकर दोनों फोरमों के हाशिए की शोभा बढ़ायेंगें। यकीनन यह हिट ब्लाग लेखक बहुत अच्छा लिखते हैं क्योंकि उनकी छह लाईनों के पाठ पर लोग साठ दूसरे ब्लाग लेखक पाठ लिख डालते हैं। पंद्रह दिनों तक बहस चलती है। अभी तक दो ब्लाग लेखक नंबर एक के दावेदार थे अब तीसरा भी खड़ा हो गया है। तीसरेे को देखकर चार पांच दूसरे भी तैयार हो गये हैं। हम उनके लिखने को चुनौती नहीं दे रहे पर अंततः यह तय बात है कि उन पर हिन्दी ब्लाग जगत का केंद्रीय बिन्दू स्थापित नहीं है। फोरमों के हाशिए प्रतिदिन शीर्ष पर रहने वाले दो तीन लेखकों को छोड़कर बाकी के बारे में यह कहना कठिन है कि आम पाठक के लिये कुछ अधिक महत्व रखते हैं अलबत्ता ब्लाग लेखक जिज्ञासावश उनको पढ़ते हैं वह भी इसलिये क्योंकि उनको सुविधाजनक लगता है।
ऐसे में अगर आप फोरम पर ब्लाग देख रहे हैं तो हाशिए के हिट देखने की बजाय मुख्य क्षेत्र में ब्लाग देखें। पृष्ठ बदलने का कष्ट उठायें क्योंकि शौकिया तथा गंभीर ब्लाग लेखकों से परिचित हुआ जा सके। हिन्दी को बहुत बड़ा सफर अंतर्जाल पर तय करना है और कोई नहीं जानता वह क्या क्या रूप लेकर आगे बढ़ेगी। कम से कम पाठकों तथा विश्लेषकों को हाशिए पर ही खड़े नहीं रहना चाहिए।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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