इंसान के दिल में
हर पल भय का
भूत समाया रहता।
बेचैनी का दरिया
देह की रक्त शिराओं में
हर पल बहता।
कहें दीपकबापू ज्ञान से
भागता पूरा ज़माना
स्वयं पर अपना अत्याचार
हर पल सहता।
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यह एक अव्यवसायिक ब्लॉग/पत्रिका है. इस पर मौलिक रचनाएं प्रकाशित है. कृपया इसे किसी फोरम पर न दिखाएँ क्योंकि यह ब्लॉग नहीं है बल्कि इसे संग्रहक के रूप में प्रयोग किया जा रहा है. लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर
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