सुबह की शीतल हवा
फिर दोपहर की तपती धूप
सर्दी अब याद ही रह जायेगी।
बर्फ भी कभी कहर ढाती है
तबाह हुए शहर की
सच्चाई अभी सतायेगी।
कहें दीपक बापू घड़ी की
सुईंया तो चलती जाती हैं
नहीं रखती किसी का हिसाब
जो अपनी चाल से बतायेगी।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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