Monday, January 5, 2015

चाहतों का राह पर-हिन्दी कविता(chahton ki rah par-hindi poem)



सिक्कों की खनक
मौज की भनक
मदहोशी की जनक
चाहत
इंसान को मार्ग से
भटका देती हैं।

एक पूरी होती नहीं
दूसरी दिल लटका देती है।

कहें दीपक बापू चाहत की राह पर
चलते रहते जिंदगी भर
फिर भी कुछ करने की
प्यास  रह जाती है,
जिस सुख के लिये
करते संघर्ष
उसकी आस रह जाती है,
समेटते रहते सामान
दोनों हाथ से हमेशा
यह अलग बात है
धागे खोलते हुए
हर उंगली झटका देती है।
-------------------------

दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका 


No comments:

इस लेखक के समस्त ब्लॉग यहाँ एक जगह प्रस्तुत हैं

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका

दीपक भारतदीप का चिंतन