Sunday, January 12, 2014

भ्रष्टाचार की जनक है अर्थनीति-हिन्दी चिंत्तन लेख (bhrashtachar ki janak hai arthaniti-hindi chinntan lekh)



      आजकल देश के प्रचार माध्यमों में बाबा रामदेव के देश की अर्थनीति में बदलाव को लेकर दिये गये सुझावों पर बहस चल रही है।  एक बात निश्चित है कि बाबा रामदेव ने कभी स्वयं अर्थशास्त्र का अध्ययन नहीं किया इसलिये उन्हें अर्थनीति का ज्यादा ज्ञान नहीं हो सकता मगर उनके भक्तों में अनेक ऐसे लोग हैं जो इस विषय पर अपना दखल रखते हैं और उनकी राय पर ही वह अपनी राय रख रहे हैं।  दूसरी बात यह है कि कोई सामान्य अर्थशास्त्री ऐसी राय रखे तो उस पर कोई ध्यान न दे पर जब बाबा रामदेव रख रह हों तब यकीनन देश का ध्यान उसकी तरफ जाता ही है। बाबा रामदेव अपने राजनीतिक अभियान पर हैं हमें उनके इस अभियान पर  कुछ नहीं कहना पर उन्होंने अर्थनीति पर अपनी राय रखी उसमें हमारी दिलचस्पी है।
      शैक्षणिक काल में  अर्थशास्त्री के छात्र होने के कारण हमें अनेक ऐसे सूत्रों की जानकारी है जिनके आधार पर अर्थनीति तय होती है।  अर्थशास्त्र में पागल तथा सन्यासियों को छोड़कर सभी का अध्ययन किया जाये। सीधी बात कहें तो मनोविज्ञान तथा दर्शनशास्त्र का अध्ययन नहीं किया जाता  लेकिन बाकी शास्त्रों का अध्ययन करना आवश्यक है। हमने देखा है कि भारतीय अर्थशास्त्री कभी अमेरिका, कभी कनाडा, कभी चीन, कभी सोवियत तो कभी किसी दूसरे देश का उदाहरण देकर भारतीय अर्थनीति के बारे में अपनी राय रखते है। तय बात है कि वह राजनीति और इतिहास पर अधिक ध्यान देते हैं और समाज शास्त्र को भूल जाते हे।
      एक बात याद रखने लायक है कि भारत की भूगौलिक, सामाजिक, धाार्मिक तथा मानवीय स्वभाव की स्थिति किसी भी देश से मेल नहीं खाती। हमारे अर्थ, राजनीति, धार्मिक तथा सामाजिक शास्त्रों के विद्वान अन्य देशों के उद्धरण देकर यहां भ्रम फैलाते है। हमारा मानना है कि विदेशी विचाराधाराओं को हमेशा भारतीय परिप्रेक्ष्य में अध्ययन कर उनकी नीतियां लागू करना चाहिये।  यह हो नहीं रहा इसलिये ही देश में विकास को लेकर विरोधाभासी स्थिति देखने को मिलती है। देश के सरकारी अर्थशास्त्री न तो भारतीय इतिहास का अध्ययन करते हैं न ही उनको भारतीय समाज की स्थिति का पता है जो विश्व में प्रथक है। उनकी राय पर चल रहा देश आजादी के बाद  66 साल भी विकसित नहीं हो पाया।
      इसमें कोई दूसरा तर्क नहीं हो सकता कि बाबा रामदेव प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध लोगों में अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जो भारतीय समाज के निकट हैं। वह साधु, हैं, वह योगी हैं, सबसे बड़ी बात यह कि वह आजादी के बाद देश में उभरे ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने कृत्य से आमजनों के हृदय को सर्वाधिक प्रभावित किया। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के लिये जिन सुझावों को प्रस्तुत किया उनमें यकीनन कोई सार्थकता होगी।  उन पर विचार करना चाहिए।
      दरअसल यह लेख लिखते समय लेखक ने सोचा था कि देश की कर प्रणाली पर कुछ लिखा जाये पर लगता नहीं है कि टंकण प्रक्रिया उस तरफ बढ़ रही है।  भारत में करप्रणाली मेें मूलभूत परिवर्तन की आवश्यकता है इससे हम सहमत हैं।  बाबा रामदेव ने आयकल समाप्त कर बैंकों में व्यवहार कर लगाने का जो विचार हुआ है उसका कुछ विद्वान समर्थन कर रहे हैं तो कुछ लोग इसका विरोध कर रहे हैं।  इधर उधर की बहस से पता चला कि यह भी किसी विदेशी देश की अर्थनीति की ही हमारे देश में पुनरावृत्ति करने का प्रयास है।  हम अभी तक बहस ही देख रहे हैं। इस पर कोई निष्कर्ष अभी तक नहीं निकाला।   हां, बाबा रामदेव की एक बात से सहमत हैं कि करप्रणाली सरल होना चाहिये। करों के रूप कम होना चाहिये। हम जब भ्रष्टाचार की बात करते हैं तो कहीं न कहीं हमारी अर्थनीति भी है।

दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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