Saturday, May 28, 2011

जमीर और धोखा-हिन्दी शायरियां (zamir aur dhokha-hindi shayriyan)

दर दर से
वफा के नाम पर धोखा खाते हुए
यकीन टूट गया लगता है,
पर घर घर में टूटे हुए दिलों को
रोता देखकर होता है अहसास
तरसे हैं लोग वफादारी के लिये
पर किसी से करना उनको गवारा नहंी
ऐसे में अपना यकीन
अपने जमीर में जिंदा लगता है।
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चमचागिरी करने वालों की
तारीफ तो हम भी किये जाते हैं,
कितना माद्दा है उनके दिल में
बिना ज़मीर के जिये जाते हैं।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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