Saturday, April 24, 2010

शैतान और पहरेदार-हिन्दी व्यंग्य कविता (saitan aur paharedar-hindi shayari)

दहशतगर्द घूम रहे आजाद
उनकी गोलियों से सभी तो नहीं मर गये
फिर भी जिंदा हैं ढेर सारे लोग
इसलिये मान लो चमन में अमन है।

खेल के नाम पर चल रहा जुआ
जिनकी मर्जी है वही तो खेल रहे हैं
बाकी लोग तो बैठे हैं चैन से
इसलिये मान लो चमन में अमन है।

कुछ नारियों की आबरु होती तार तार
बाकी तो संभाले हैं घरबार
इसलिये मान लो चमन में अमन हैं।

लुटेरों ने दौलत भेज दी परदेस
पर फिर भी भूखे लोग जिंदा हैं
इसलिये मान लो चमन में अमन है।

खरीद रखा है शैतानों ने उस हर शख्स को
जो भीड़ पर काबू रख सकता है
अगर उनको रोकने की कोशिश हुई
तो आ जायेगा भूचाल,
छोड़कर भाग जायेंगे तुम्हारे पहरेदार
छोड़कर तलवार और ढाल,
जलने लगेगा हर शहर,
गु्फा से निकले शैतानों का टूटेगा कहर
चलने तो उनका कारवां,
वही हैं यहां के बागवां,
बंद कर लो अपनी आखें,
शैतानो को रोकें ऐसी नहीं रही सलाखें,
उनका व्यापार चल रहा है
इसलिये मान लो चमन में अमन है।

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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