साफ सुथरा इंसान-हिन्दी क्षणिकायें (saf suthara insan-hindi short poem)
आपस में जाम टकराते हुए लोग
नैतिकता की बात करने लग जाते हैं,
फिर सुनाते हैं अपनी कमाई के नुस्खे
जैसे दो नंबर की कमाई एक नंबर की हो
सीना फुलाकर उसकी कहानी सुनाते है।।
बहुत अच्छा लगता है
आदर्श और नैतिकता की बात करते हुए
बशर्त है आदमी स्वयं से छिप सकता हो।
वही कहलाता है साफ सुथरा इंसान
जो दूसरों पर इल्जाम लगाने में
कभी देर नहीं करता
पर बात अगर अपने पर आ जाये तो
जमाने का जिम्मेदार बताते हुए
अपना कसूर अपनी नज़र बचा सकता हो।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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