Tuesday, May 28, 2019

घर से निकले बाहर आये, शहर छोड़ा जंगल भाये-दीपकबापूवाणी(Ghar se nikle bahar aaye-DeepakBapuWani)

रब को दरबार उसे मनाने जायें,
स्वयं के लिये मयखाने जायें।
कहें दीपकबापू दिल बेकाबू घोड़ा
कहां किस तरफ चलाने जायें।
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घर से निकले बाहर आये,
शहर छोड़ा जंगल भाये।
कहें दीपकबापू मन बड़ा शातिर
खुश होता वहीं जहां दंगल पाये।
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 पेड़ की तरह जिंदगी नज़र आती,
कभी पत्तों की तरह ढह जाती।
कहें दीपकबापू जितना मिले आनंद का
रस पीले मत पीट अपनी छाती।
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अपने बनाये शिखर पर सब जमे हैं,
धमंड में सबके सिर थमे हैं।
कहें दीपकबापू चल अपनी राह
ज़माने के कदम लोभ में जमे हैं।
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रुपये कमाने का तरीका पूछते हैं,
सभी जरूरतों से यूं ही जूझते हैं।
कहें दीपकबापू जिंदगी की पहेली से
फुर्सत में ही जूझते हैं।
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अपने काम न इतराओ कि
इतना कि नज़र लग जाये।
कहें दीपकबापू नेक नाम से
ऐसे न लूटो कि लुटेरा शर्माये।।
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अंदर पंचभूत के बुत रह गये हैं,
दीवारें छत खड़ी घर बह गये हैं।
‘दीपकबापू’ अनाड़ी माया पाकर भी रोते
खिलाड़ी तो हर दाव सह गये हैं।।
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Tuesday, June 26, 2018

विकास पथ पर धुंआं चढ़ा है=दीपकबापूवाणी (VikasPath uh dhunan chadhahain-Deepakbapuwani)


राजकाज दलालों के हाथ है,
कायदा अब कमीशने के साथ है।
कहें दीपकबापू रखेगा भगवान
सदियों से संसार उसे हाथ है।
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विकास पथ पर धुंआं चढ़ा है,
जिंदा आदमी मुर्दे जैसे खड़ा है।
कहें दीपकबापू भीड़ बहुत है
फिर भी तन्हाई का खौफ बढ़ा है।।
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राजपथ पर आमजन नहीं चलेंगे,
जनपथ पर राजा नहीं चलेगें।
कहें दीपकबापू लोकतंत्र में भी
तय हुआ साथ नहीं चलेंगे।
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रुपहले पर्दे के दृश्य हैं झूठे,
विज्ञापन के साथ दिल लूटे।
कहें दीपकबापू जापते नाम
न आंख रोती न देखे सपने टूटे।
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पद के मद में बह रहे है।
सुने कम बस अपनी कह रहे हैं।
कहें दीपकबापू जमीन पर खड़े
आमजन मौन सब सह रहे हैं।
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Wednesday, May 2, 2018

विज्ञापन से भद्दे चरित्र भी चमकाये जाते-दीपकबापूवाणी(iVed Corrector shine by add-DeepakBapuwani)

आकाश से गिरे बड़ी चोट का डर है, पाप बढ़ाये चिंता भले पक्का घर है।
‘दीपकबापू’ भीड़ में जाकर एकांत खोते, इंसानी दिल वहां नफरत से तर हैं।।
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मिट्टी का इंसान लोहे का यंत्र है बना बिजली की तारों से चरित्र है तना।
‘दीपकबापू’ अपना सच स्वयं से छिपाता, सबकी छवि पर कुहरा छाया है घना।।
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विज्ञापन से भद्दे चरित्र भी चमकाये जाते, श्रृगार रस से ग्राहक धमकाये जाते।
‘दीपकबापू’ सौदागरों के मायाजाल में फंसे, रुदन से भी हंसते कमाये जाते।।
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क्या दोष दें जो सड़क से हुए महलवासी, वेशभूषा चमकी पर नीयत रही बासी।
‘दीपकबापू’ जुबानी यकीन उन पर दिखाते, झूठ बेच कमाते जो दौलत खासी।।
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चंदन जैसी सुंगध किसी इत्र में नहीं है, सुग्रीव जैसा जैसा कोई मित्र नहीं है।
शरीर में भर जाते ढेर विकार, ‘दीपकबापू’ पावन हृदय जैसा केई चित्र नहीं है।।
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कोई ठेले कोई दुकान से करता कमाई, देखना यह किसके साथ है सच्चाई।
‘दीपकबापू’ किसी को छोटा बड़ा न समझें, सबके हाथ ने भाग्य रेखा पाई।।
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Thursday, April 26, 2018

ऊंची शिक्षा करें नौकरी पर साहब कहलायें-दीपकबापूवाणी (OOnchi shikssha karen naukri par sahab kahalayen-DeepakBapuwani)

.ऊंची शिक्षा करें नौकरी पर साहब कहलायें, उच्च पद की छवि देखकर दिल बहलायें।
दीपकबापूसूने पंजरे में मन का देखें रुदन, वाणी हुई मूक मौन से कितना सहलायें।।
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हाथ में हथियार अमन की करें बात, गरीबी हटाने में लगे अमीरी में बिताते रात।
दीपकबापूदिन में इश्तिहारी फरिश्ते जैसे फिरें, अंधेरी रात में करें शैतानी घात।।
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दर्द है दिल में थामे शायद इसलिये झंडे, कपड़ा लहराते नीचे हाथ में पकड़े डंडे।
दीपकबापूपता नहीं कर पाते सच झूठ, भूख पर करते रुदन खाते वह जो अंडे।।
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दिल में बसी माया बाहर छवि संत है, वाणी से बहें उपदेश दान पर उनका अत है।
दीपकबापूपरमात्मा का नाम जपा देखे नहीं, एक ही बात समझी उनका रूप अनंत है।।
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मानव भाव से ही पत्थर भी होते भगवान, हृदय में आनंद जिसके वही होता धनवान।
दीपकबापूहजारों बंदों का दिल आजमा चुके, अपने भरोसा रही वही होता बलवान।।
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Thursday, October 5, 2017

सफेदपोशों की पूंछ कातिलों ने पकड़ी है-दीपकबापूवाणी (Safedposhon ki poonch katiolon ne pakdi ha9i-DeepakBapuWani)

मन के गुलाम पर स्वामित्व का बोध करें, लाचारी में फंसे पराये दर्द पर शोध करें।
‘दीपकबापू’ दरियादिली का रचाते स्वांग, अक्ल के दावेदार चुनौती पर क्रोध करें।।
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बाज़ार के सामान में दिल कहीं खो गये, संपन्न अर्थी पर प्रेम के भाव सो गये।
‘दीपकबापू’ ढूंढे नहीं मिले जज़्बाती रिश्ते, लालची ख्याल चिंता के बीज बो गये।।
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सफेदपोशों की पूंछ कातिलों ने पकड़ी है, चेहरे सजे सामने नीयत पाप ने पकड़ी है।
‘दीपकबापू’ नहीं जानते शब्दों का सौंदर्य, जुबान खड़ी ऐसी जैसे बांस की लकड़ी है।।

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घडी की सुई के साथ हाल बदलते,
दरबारी नर्तक आम मंच पर ताल बदलते।
‘दीपकबापू’ चौराहे पर खड़े देखें
राहों के साथ लोग कदम चाल बदलते।
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प्रचार के पर्द पर दिखने की
बीमारी ज़माने में छा गयी है।
पैसे से प्रसिद्धि का खेल जारी है
शब्दों में चीखें छा गयी हैं।
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नाटकीय खेल में न जीत न हार
फिर भी नतीजा पहले से तय है।
‘दीपकबापू’ ईमानदार भूमिकाओं में
अभिनेताओं की गजब बेईमान लय है।
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Wednesday, September 6, 2017

कभी दूर कभी पास रिश्तों का यही अफसाना है-दीपकबापूवाणी ((Kabhi door kabhi paas rishton ka yahi afasana hai-DeepakBapuwani)

दुनियां की भलाई का ठेका लिया
अपना नहीं कोई ठिकाना है।
बेईमानों से जंग में
हों नहीं पर ईमानदार दिखाना है।
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कभी दूर कभी पास
रिश्तों का यही अफसाना है।
कभी गम कभी आस
ज़िंदगी किश्तों में जाना है।
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इंसानों के अरमानों की
कदम कदम पर गिरी लाश है।
फिर भी सभी को
ख्वाबी जन्नत की तलाश है।
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शहर की भीड़ में
अपनों की तलाश करते हैं।
रोज मिलती पीड़ में
सपनों की तलाश करते हैं।
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बस्तियां उजाड कर बड़े शहर बसाये,
हवा पानी की धारा में पत्थर फंसाये।
दीपकबापू पेड़ों की जगह महल देखते
लोहद्वारों पर बिछा सन्नाटा पांव पसराये।
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सिक्कों में बिके अच्छा हो या गंदा है।
धन मिले खरा वरना इंसान मंदा है।।
दीपकबापू भलाई का काम मिल जाये
या कत्ल का सब यहां धंधा है।।
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आओ उनके गले मिलने पर
जल्दी जल्दी जश्न मना लें।
पता नहीं फिर कब वह
अपने हाथों को तलवारें थमा दें।
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