Tuesday, October 11, 2016

दिल्ली की बजाय लखनऊ की रामलीला चर्चा का केंद्र बनी-हिंदी संपादकीय (Now First time Delhi not center for Ramlila And Rawan Dahan,Lacknow-Hindi Editorial)

                  विश्व पटल पर यह पहली बार यह पता लगा होगा कि दिल्ली के बाहर भी रामलीला और रावण दहन होता है। राजपद पर बैठे लोग किस तरह देश की सांस्कृतिक तथा अध्यात्मिक दर्शन को व्यापक परिदृश्य में स्थापित कर सकते हैं-यह अब राज्यप्रबंध में कार्य करने के इच्छुक लोगों को सीखना चाहिये।
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                  इस बार भारतीय प्रचार माध्यमों में नईदिल्ली की बजाय लखनऊ की रामलील क्यों छायी रही है? इसका उत्तर देने की आवश्यकता नहीं है। नईदिल्ली के रामलीला आयोजकों ने पिछले वर्ष प्रधानमंत्री को आमंत्रण न भेजकर राजनीति की थी।  उसका यह जवाब है कि उनके लखनऊ जाने से नईदिल्ली की रामलील प्रचार माध्यमों में उसी तरह चर्चित होगी जैसे अन्य शहरों में होती है। इसे आंतरिक सर्जिकल स्ट्राइक कहना तो ठीक नहीं होगा पर कहें भी तो क्या? राजपुरुषों को अपने प्रतिकूल कृत्यों पर दंडात्मक कार्यवाही करना ही चाहिये-आजकल मुंह फेरना बदला लेने का सबसे श्रेष्ठ उपाय है। हम अध्यात्मिक ज्ञान साधक इस प्रकरण को ऐसे ही देखते हैं। पहले बड़े लोग दिल्ली में इसलिये उपस्थित रहते थे क्योंकि वहां की रामलीला प्रसिद्ध है। जबकि अब यह स्पष्ट हो गया है कि बड़े लोग चाहें तो समाज के दृष्टिकोण में बदलाव ला सकते हैं।  वह चाहें तो छोटी जगह को भी बड़ी खबर का हिस्सा बना सकते है।
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                 एक ने कहा-‘दिन खराब हों तो कंप्यूटर भी खराब क्यों होता है? मोबाईल भी बंद हो जाता है। टीवी का डिस्क संपर्क भी गायब हो जाता है।
    दूसरे ने जवाब दिया कि ‘यह बताने के लिये कि अच्छे दिन क्या होते हैं।
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नोट-हमारे साथ कंप्यूटर का संकट चल रहा है इसका इस सवाल या जवाब से कोई संबंध नहीं है। हालांकि इस संकट के निवारण के तत्काल बाद यह पहला संदेश है। आज  जब में अपने लिये कह रहा था तब वह सब काम रहा था।


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