Friday, March 11, 2016

हंसना मना-हिन्दी कविता (Hansana mana-Hindi Kavita)

दौलत के दम पर
लगता है यहां
हर रोज नया मेला।

सुरों की महफिलों में
बेसुरे भी चमक जाते
रात में सजे दिन की बेला।

कहें दीपकबापू हंसना मना
लिख दो दिल पर
शब्दों पर सिक्के भारी
हास्य रस में
फूहड़ता का बहुत विष झेला।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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