पश्चिमी जगत के नेता लोकतंत्र, मानवधिकार तथा अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कलुषित तत्वों को संरक्षण देंगे
ऐसे हमले होते ही रहेंगे। पेरिस पर हमले से यह प्रमाणित हो गया है कि असहिष्णुता बढ़ी
है तब भारत को इसके लिये बदनाम करना ठीक नहीं है। भारतीयनेता कभी प्रत्यक्ष व संकेत
से यह साफ करते रहे हैं कि आतंकवाद में अपने शत्रु व मित्र का अंतर न करें। पेरिस हादसे
से भी इसे कोई इसे मानेगा इसमें संदेह है।
इस विश्व के विकसित देशों पहचान हथियारों के उत्पादक के रूप में हैं और उनके
प्रथम प्रयोक्ता आतंकवादी ही होते हैं! दोनों की जुगलबंदी में मरता तो आम आदमी ही है।
विकास के साथ नयी तकनीकी वाले हथियार बनने से समाज की सुरक्षा बढ़ती है या आतंकवाद? यह भी सोचने वाली बात है।
एतिहासिक दृष्टि से भारत को सीधे आईएस से कोई भय नहीं है पर पाकिस्तान के कुछ
संगठन उसके छद्म समर्थन का दावा कर अपना नाम चमका सकते हैं। अरब लोगों से भारत का सीधा
टकराव नहीं है इसलिये आई एस का खतरा वाया पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठनों से ही हो सकता है। अरब
जगत या आईएस से भारत का सीधा टकराव नहीं हुआ यह अलग बात है कि उनकी आड़ में पाकिस्तान
अपना आतंकी खेल दिखाता है।
अमेरिका ने अलकायदा खड़ा किया उसका दंश उसने झेला। आईएस भी उसका ही पाला हुआ
है जो अंततः उस पर अधिक हमले करेगा। पाक उसकी आड़ ले सकता है। धर्म पर भारतीय पद्धति
से चर्चा किये बिना विश्व में आतंकवादी रोकना
संभव नहीं है जो कि भारतीय अध्यात्मिक दर्शन पर आधारित है। अमेरिका अगर अरब जगत में
लोकतंत्र के नाम पर हिंसक संगठनों को हथियार देना बंद कर दे तो स्वतः ही विश्व में
शांति हो जायेगी। दलाईलामा को बुरा कहना व्यर्थ है क्योंकि चीन के साथ भारत की वर्तमान
मित्रता अपने अनुकूल नहीं लगती होगी। सभी को अपनी धार्मिक दुकान बचाने का अधिकार है।
सच यह है कि अमेरिका ने इराक अफगानिस्तान में आतंक मिटाने और लोकतंत्र लाने में हिंसक
तत्वों को ही पैदा करने का प्रयास किया जिससे वैश्विक संकट बढ़ा है। दलाईलामा बुरे आदमी
नहीं है पर स्वप्रचार की ललक शायद उनमें भी है जो इंसान को कभी न कभी संकट में डाल
देती है। चेतन भगत पर नारेवादी बुद्धिजीवियों की छींटाकशी का कारण यह है वह अंग्रेजी
के लेखक होते हुए भी हिन्दीनुमा लोगों का साथ देते हैं।
आतंक का मुकाबला किसी सूफीवाद के साथ ही पूरे विश्व के राज प्रबंधकों के जनहितैषी
कदमों से मध्यम वर्ग को संरक्षण देने पर भी हो सकता है। आपकीबात आतंकवाद का प्रतिरोध
सूफीवाद से संभव है पर साथ ही राजप्रबंधक जनहितैषी कदमों से प्रचारक बुद्धिजीवी मध्यमवर्ग
को संरक्षण प्रदान करें। पश्चिमी देशों में उच्चपरिवार के युवा अध्यात्मिक ज्ञान के
अभाव में आतंकी बने। ऐसे भटके युवाओं के लिये सूफीवाद का अच्छा मार्ग होगा।
जिस धर्म के नाम पर 60 देशों का राज्यप्रबंध हो
वहां के लोग हिंसा करेंगे तो अन्य समुदाय के लोग धर्म से जोड़कर जरूर देखेंगे। जहां
धर्म आधारित राज्य प्रबंध व्यवस्था हो वहां क्रे लोगों की हिंसक गतिविधियों को अन्य
समुदायों को लोग भी फिर धर्म से जुड़ी देखते हैं। आपकीबात धर्म के नाम पर जिस तरह अन्य
व्यापार चलते हैं वैसे ही कमाई के लिये आतंक भी चल रहा है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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