देश में बढ़ रहा है खज़ाना
मगर फिर भी अमीरों की भूख
मिटती नज़र नहीं आती।
देश में अन्न भंडार बढ़ा है
पर सो जाते हैं कई लोग भूखे
उनकी भूख मिटती नज़र नहीं आती।
सभी बेच रहे हैं सर्वशक्तिमान के दलाल
शांति, अहिंसा और गरीबों का ख्याल रखने का संदेश
मगर इंसानों पर असर होता हो
ऐसी स्थिति नहीं बन पाती।
फरिश्ते टपका रहे आसमान से तोहफे
लूटने के लिये आ जाते लुटेरे,
धरती मां बन देती खाने के दाने,
मगर रुपया बनकर
चले जाते हैं वह अमीरों के खातों में,
दिन की रौशनी चुराकर
महफिल सज़ाते वह रातों में,
भलाई करने की दुकानें बहुत खुल गयीं हैं
पर वह बिना कमीशन के कहीं बंटती नज़र नहीं आती।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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Time to Move: Typepad Is Shutting Down September 30, 2025
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4 days ago
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