Saturday, July 23, 2011

समय का सैलाब और उम्मीद-हिन्दी कविता (samay ka sailab-hindi kaivita or poem)

रौशनी में जीने के आदी
अंधेरे के भय से रोज डरेंगे,
सांस लेते हैं जो वातानुकूलित कक्षों में
दुश्मनों नहीं लड़ सकते जंग
इसलिये वह दोस्ती का दम ही भरेंगे।
गिरी नहीं जिनके शरीर से
एक बूंद पसीने की
वह मेहनतकश की कद्र नहीं कर सकते
मगर उसकी भूख से अपनी तिजोरी भरेंगे।
कहें दीपक बापू
लोगों के भले की बात सुनते सुनते
कान पक गये हैं,,
हम टूटे हैं
फिर भी नहीं रास्ता कोई
इसलिये उम्मीद ही करेंगे,
ज़माने के तख्त पर सजे बबूल
समय सैलाब में कभी तो बह जायेंगे
तब चमन में फूल भी सजेंगे।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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