Sunday, April 17, 2011

anna hazare ka anti corruption movemnt -a specila hindi article अन्ना हजारे के आंदोलन पर विशेष लेख-अब रहेगी अगली बैठक पर नज़र

            लिखते लिखते हमने अन्ना हजारे साहिब पर तीन लेख लिख डाले। सभी फ्लाप हो गये। अब तो अपनी समझ पर ही संदेह होने लगा है। इसका कारण यह है कि जब भीड़ किसी विषय पर नहीं सोच रही हो उस पर आप सोचने लगें या भीड़ किसी विषय पर सोच रही हो और आप न सोचें तो अपनी अक्ल पर संदेह करना बुरा काम नहीं है। अपनी अक्ल पर संदेह आत्ममंथन के लिये प्रेरित करता है जो कि भविष्य के लिये लाभदायी होता है।
          कल जनलोकपाल कानून बनाने के मसले पर प्रारूप समिति की बैठक हुई। इसमें पांच नागरिक प्रतिनिधियों के शामिल होने की चर्चा बहुत हुई थी पर ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं कुछ रह गया है जो सामने नहीं आया। एक तरफ तो यह बात आ रही है कि नागरिक प्रतिनिधियों ने जनलोकपाल कानून के लिये तैयार अपने प्रारूप से कुछ ऐसे प्रावधान हटा लिये हैं जिनका विरोध यथास्थितिवादी कर रहे हैं। दूसरी तरफ एक केजरीवाल महोदय कह रहे हैं कि वहां कुछ नहीं हुआ केवल प्रारंभिक बातचीत हुई है। जिन वकील साहब ने प्रारूप बनाने में महत्वपूर्ण अदा की थी उनका बयान नहीं आया। अलबत्ता पूर्व न्यायाधीश जो कि अब नागरिक प्रतिनिधि हैं ने बताया कि वह विवादास्पद प्रसंग प्रारूप में नहीं था। तब यह सवाल उठता है कि फिर किसलिये इतनी जद्दोजेहद हुई? अगर प्रचार माध्यमों के प्रसारणों तथा प्रकाशनों का अवलोकन करें तो नागरिक प्रतिनिधियों के कथित प्रारूप की उन्हीं विवादास्पद धाराओं पर मतभेद था जिनको हटा दिया गया है। अन्ना जी ने दम के साथ अपने प्रारूप पर डटे रहने की बात की थी पर ऐसा लगता है कि कानूनी साथी कुछ दूसरा ही सोचते रहे थे। पता नहीं अन्ना हजारे जी इस बारे में क्या सोच रहे हैं?

                 जब प्रचार माध्यमों में श्रीअन्ना हजारे जी की आरती गाने का क्रम जारी है तब अनेक बुद्धिजीवियों का ध्यान केवल नागरिक प्रतिनिधियों के जनलोकपाल के प्रारूप में प्रस्तुत उन्हीं धाराओं की तरफ ध्यान जा रहा है जिनको नागरिक प्रतिनिधियों ने हटा दिया। ऐसे में लगता है कि हम ही कहीं पढ़ने और समझने में गलती कर रहे हैं। अलबत्ता अखबार बता रहा है कि अन्ना जी की टीम कुछ पीछे हटी है। कितना, हमें पता नहीं है। इधर हमारे मन में हास्य कविताओं का कीड़ा कुलबुला रहा है पर जब तक मामला समझ लें उससे बचना ही ठीक है। वैसे अन्ना जी की दहाड़ अभी भी सुनाई दे रही है पर उसका असर कम हो सकता है क्योंकि लोग जैसे जैसे इस बैठक के बारे में जानेंगे उनके दिमाग में प्रश्न उठते जायेंगे और यह पीछे हटने टाईप की खबरें उन्हें श्री अन्ना हजारे के आंदोलन से विरक्त कर सकती हैं। वैसे भी उनके बयानों से एक बात झलकती है कि वह भी प्रचार माध्यमों के प्रसारण से प्रभावित होकर बयान देते हैं पर फिर पीछे हट जाते हैं।
             नागरिक प्रतिनिधियों में केजरीवाल ही ऐसे लगते हैं जो वर्तमान व्यवस्था से कभी नहीं जुड़े होंगे। अन्ना साहब भी नहीं जुड़े पर बाकी तीन के बारे में यह तो कहा जा सकता है कि वर्तमान व्यवस्था में वह कहीं न कहीं कार्यरत रहे हैं। ऐसे में कहीं ऐसा तो नहीं हो रहा है कि कमरे के अंदर की राजनीति और बाहर सड़क की राजनीति के अलग अलग होने का सिद्धांत काम कर रहा है। केजरीवाल साहब कहते हैं कि वहां ऐसा कुछ नहीं हुआ पर उनके साथी और पूर्वजज का कहना है कि विवादास्पर धाराऐं तो उनके प्रारूप में शामिल ही नहीं थी। कहीं ऐसा तो नहीं केजरीवाल साहब केवल शोपीस की तरह मान लिये गये हों और उनसे बगैर ही ऐसी बातें भी हुई हों जिसकी जानकारी उनको न हो। बहरहाल हमारे पास स्तोत्र के नाम यही प्रचार माध्यम हैं और एक आम लेखक की तरह हम भी उसी आधार पर ही बात लिखते हैं। अब हमारी नज़र दो मई की बैठक पर है जहां अन्ना जी की टीम आगे बढ़ेगी या फिर कुछ पीछे खिसकेगी यह देखना होगा। एक बात निश्चित है कि इस देश में सुधार लाने की बात सभी लोगों के दिमाग में है, उन लोगों के दिमाग में भी जो वर्तमान व्यवस्था में फलफूल रहे हैं पर जब देश के हालत देखते हैं तो उनका शिखर पर चुप बैठे रहना भी उनको स्वयं को भी अखरता है। सवाल यह है कि बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन?
बहरहाल फ्लाप लेख एक साथ प्रस्तुत हैं

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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anna hazare,moovment against corruption,bharashtachar ke khilaf andolan

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