Friday, July 31, 2015

विषयों के शिक्षक सहजता से मिलते हैं अध्यात्मिक गुरु नहीं(shiskshak sahajta se milte hain adhyatmik guru nahin)



                    जिस तरह गुरुओं की पूजा हो रही है उससे तो लगता है कि हमारे प्राचीन ग्रंथों के अनुसार अध्यात्मिक ज्ञान देने वाले को ही गुरु मानने के सिद्धांत की मजाक बन रहा है।  यहां तो सांसरिक विषयों में शक्कर का स्वाद दिलाने वाले गुड़ ही पुज रहे हैं।
          हमारे अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार गोविंद यानि परमात्मा और गुरु दो प्रथक विषय है पर सांईबाबा के भक्तों का भय भ्रम पैदा करता है। जब गोविंद का दिन हो तो भी उनके दरबार में समागम करते हैं और गुरु का दिन हो तो भी वही करते हैं।  चमत्कारों के लिये प्रसिद्ध सांईबाबा की भक्ति केवल भौतिक लाभ की चाहत पूरी करने के लिये होती है जो अंततः अध्यात्मिक ज्ञान के धारण करने की बात तो दूर उसे सुनने से भी रोक देती है।
                    फिल्मी कलाकार, क्रिकेट खिलाड़ी तथा लोकप्रिय विषयों से जुड़े लोग जो शीर्ष पर पहंुंच गये हैं अपने शिक्षकों के गुरु होने का बखान इस तरह कर रहे हैं जैसे कि उन्हें कोई अध्यात्मिक रूप से कोई बड़ी सफलता मिली हो।  हमारे अध्यात्मिक दर्शन संदेशों का अर्थ समझे तो उसके  अनुसार सांसरिक विषयों में हर किसी को भाग्य और परिश्रम के अनुसार सफलता मिलती है पर इसमें सहायक लोग अध्यात्मिक गुरुओं जैसे पूज्यनीय नहीं हो सकते। बहरहाल गुरु पूणिर्मा पर इस तरह के दृश्य गंभीर अध्यात्मिक भाव की बजाय सांसरिक विषयों के प्रति हास्य रस का आनंद दिलाते हैं। हमारे अनुसार सांसरिक विषयों के शिक्षकों की जरूरत तो एक नहीं तो दूसरा पूरा कर देता है पर अध्यात्मिक गुरु बड़ी कठिनाई से ही मिलते है।
दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Sunday, July 26, 2015

जंग होनी ही थी-हिन्दी हास्य कविता(zang honi hi thee-hindi comedy poem)

जंग होनी ही थी-हिन्दी हास्य कविता(zang honi hi thee-hindi comedy poem)
कन्याओं की कमी थी
चार दीवानों के बीच
घर बसाने की
जंग होनी ही थी।

कान्हाओं में फैली बेरोजगारी
दो दीवानियों  के बीच
सुयोग्य वर पाने की
जंग होनी ही थी।

कहें दीपक बापू दिशा भ्रम है
मन बसा था पूर्व में
कदम बढ़ा दिये पश्चिम की तरफ
तनाव में सांस लेते दिलों के बीच
अपना अपना डर भगाने की
जंग होनी ही थी।
-------------
दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Wednesday, July 22, 2015

साहित्य के कदम-हिन्दी कविताsahitya ke kadam-hindi poem)


किताब हुई महंगी
शब्द हुए सस्ते
रचनाकार कहीं खो गये हैं।

पैसे और पदवाले
लिखने लगे हैं कवितायें
उनकी कामयाबी की कहानियों में
साहित्य के कदम खो गये हैं।

कहें दीपक बापू सौदागरों से
बाज़ार चलते हैं
चाटुकार उनके चरण
चाटते हुए पलते हैं,
फिर भी मरे नहीं सत्य शब्द
आकर्षक मनोरंजन के सौदों में
लोग जरूर खो गये हैं।
----------------
दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Saturday, July 18, 2015

इंसान की स्मरण शक्ति कमजोर होती है मुर्दा नहीं-हिन्दी चिंत्तन लेख(insan ke smaran shakti kamjor hotee hai murda nahin-hindi thought article)

                     नींद में आने वाले सपने नींद खुलते टूटते ही हैं, जब तक स्वार्थ पूरा हो ठीक वरना अपने रूठते ही है और जिंदगी की राह में चलने वाले मित्र मोड़ आने पर छूटते ही हैं।  यह अच्छा ही है प्रकृत्ति ने मनुष्य की स्मरण शक्ति को सीमित रखा है वरना लोग पुराने संस्मरणों पर अपना जीवन नष्ट कर डालते। खाली समय में यादें परेशान करती है इसलिये सामान्य मनुष्य एकांत में चिंत्तन की बजाय चिंतायें पालते हैं। इससे बचने के लिये हर मनुष्य निरंतर नये विषयों की तरफ अपना कदम बढ़ाता है ताकि वह अपना दिमाग चलायमान रख सके।
                              इसके बावजूद चालाक लोगों को यह भ्रम नहीं पालना चाहिये कि पूरे समाज की स्मरण शक्ति क्षीण है। ऐसे लोग कहते हैं कि चाहे जो कर लो कोई परवाह नहीं समाज कुछ समय चर्चा कर भूल जायेगा।  ऐसे लोगों का यह समझना चाहिये कि मनुष्य की स्मरण क्षीण जरूर होती है पर मृत नहीं होती।  चाणक्य ने कहा है कि जिस तरह हजार गायों के बीच बछड़ा जिस तरह अपनी मां के पास पहुंच जाता है वैसे ही इंसान के पाप भी उसका पीछा करते हैं। अपने कारनामों से समाज में विष फैलाने वाले लोगों भले ही कुछ समय बाद भुला दिये जायें पर समय आने पर फिर वह उन्हें दंड अवश्य देते हैं।  तब लोगों की के स्मरण स्थल में उनके प्रति जो भाव लुप्त था वह उबर कर आ ही जाता है। तब वह उनके दंडित होने पर प्रसन्न भी होते हैं।
                              योग तथा ज्ञान साधक सदैव इस बात का प्रयास करते हैं कि उनके हाथ से कोई ऐसा काम न हो जिससे उनका स्वयं का मन पश्चाताप की अग्नि में जले।  वह अन्य लोगों में अपनी छवि की परवाह नहीं करते पर समाज ऐसे ज्ञानियों को अपने मस्तक पर इस तरह धारण करता है कि वह कभी उसके स्मरण क्षेत्र से लुप्त नहीं होते।
प्रस्तुत है इस पर एक कविता
---------------
स्मरण में नहीं  है
वह मित्र
जिंदगी के सफर में जो साथ थे।

भूल गये उनकी ताकत
हमारे सहारे जिनके हाथ थे।

कहें दीपक जिंदगी का रथ
चलता है इतनी तेजी से
आंखों के सामने गुजर जाते
बड़े बड़े पेड़
फसलों से भरे खेत
गगनचुंबी इमारते
न हमने पूछा
न किसी ने बताया
कौन उनके नाथ थे।

------------

दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Sunday, July 12, 2015

युवा खून के सौदागर-हिन्दी कविता(yuva shakti ke saudagar-hindi poem)

युवा शक्ति के
विकास का नारा
धन के लोभी लगाते हैं।

कहीं चूसते पसीना
कहीं पैसे के लिये
नशे का बाज़ार सजाते है।

कहें दीपक बापू युवा शक्ति से
देश विकसित हो जाता
अगर कोई खूबसूरत सपने के
सच में उगने के बीज बो पाता,
यहां तो युवा खून के सौदागर
मुफ्त का पसीना बनाते हैं।
-----------------
दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Sunday, July 5, 2015

एक पत्रकार की मौत अफसोसजनक(ek patrakar ki maut ka afasosjanak, very soryy for death of journalist)

अपनी बिरादरी के बाहर के शिखर पुरुषों पर संवेदनहीन होने का आरोप लगाने वाले टीवी चैनलों के प्रचारक यह बतायेंगे कि अपनी ही बिरादरी के एक सदस्य की मौत पर उन्हें वाकई अफसोस हुआ? हुआ तो फिर यह बतायें कि उसकी मौत को राजनीतिक विषय से जोड़ते हुए वह जो बहस कर रहे थे उसमें हर एक सवाल के बाद वह जवाब आने से पहले ही विज्ञापन प्रारंभ क्यों कर देते हैं? जवाब के बाद फिर विज्ञापन प्रारंभ हो जाता था।  वह जिस तरह अपनी ही बिरादरी के सदस्य की मौत को आर्थिक रूप से भुना रहे थे उसे भारतीय समाज में संवेदनहीनता ही माना जाता है। कहीं किसी बाज़ार में किसी दुकानदार की मौत होती है तो वहां के दुकानदार अपनी दुकान बंद शोक मनाते हैं।  टीवी चैनल बंद नहीं हो सकते पर विज्ञापन पूरे दिन तो नहंीं कम से कम अपने सहधर्मी की मौत पर बहस के समय तो बंद हो सकते थे।  एक तो हमें उस पत्रकार की मौत पर एक बुद्धिजीवी होने के नाते बहुत अफसोस हुआ उसे इन विज्ञापनों ने व्यवधान पैदा कर दिया।
                              उस पत्रकार की मौत पर हमें वाकई अफसोस है। वह अपने घर का अकेला कमाने वाला था। इसलिये भगवान से प्रार्थना है कि उसके परिवार को यह दुःख झेलने की शक्ति दे वह टीवी चैनल वालों से अनुरोध है कि उसके परिवार की सहायता करना न भूलें। भारतीय समाज भले ही उपभागों मे बंटा है पर उसमें यह परंपरा है कि सहधर्मी, सहकर्मी और सहमर्मी विपत्ति के समय पर सहायता करते ही हैं।
दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Wednesday, July 1, 2015

सड़कछाप के हितैषी-हिन्दी व्यंग्य कविता(sadak chhap ke hitaishi-hindi satire poem)

विकास पर आंसू बहाने वाले
विद्वानो की रोटी
भूखों के नाम पर चल ही जाती है।

सड़कछापों के हितैषियों की
महंगी विदेशी गाड़ियां भी
शहर में चल ही जाती है।

कहें दीपक बापू तख्त पर
बैठे इंसान कभी बूढ़े नहीं होते
दौलत और शौहरत के मद में
चाहे उनकी अक्ल ढल ही जाती है।
------------------
दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

इस लेखक के समस्त ब्लॉग यहाँ एक जगह प्रस्तुत हैं

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका

दीपक भारतदीप का चिंतन